अनिल कुमार शर्मा मझौलिया पश्चिम चंपारण, बिहार
पपीता की खेती से संपन्नता की तरफ । आज के समय में उद्यानकी फैसले किसानों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं जिसमें से मुख्य रूप से पपीते की खेती द्वारा किसान भाई अधिक आमदनी प्राप्त कर खुशहाल हो सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र माधोपुर पश्चिम चम्पारण के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ अभिषेक प्रताप सिंह ने बताया कि पपीता एक परपरागण वाली फसल है इसका व्यवसायिक खेती बीज के द्वारा पौध तैयार करके की जाती है जिसमें बहुत उन्नत किस्म जैसे पूसा ड्वार्फ, पूसा मजेस्टि, पुणे सलेक्शन 3 एवं प्राइवेट कंपनियों के बीज जैसे रेड लेडी , ताईवान पिंक आदि बाजार में उपलब्ध है जिसे किसान भाई लेकर इसकी खेती कर सकते हैं। और पौधे करने के लिए पॉलिथीन की थैलियां में मिट्टी एवं गोबर की भुरभुरी खाद में ट्राईकोडरमा मिलाकर भरने के उपरांत 1 सेंटीमीटर की गहराई में अच्छे किस्म के बीजों को अगस्त से सितंबर के महीने में बोना चाहिए बीज की बुवाई के पुर्व बीज उपचार भी आवश्यक है । लगभग डेढ़ से 2 महीने के उपरांत जब पौधा 10 से 15 सेंटीमीटर की ऊंचाई हो जाने के उपरांत तैयार किए गए खेत में 2 मीटर की दूरी पर पौध से पौध एवं लाइन से लाइन की दूरी 2 मीटर पर 60 x 60 x 60 सेमी के आकार के गड्ढे बनाकर उसमें 20 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 1 किलोग्राम नीम की खली, 1 किलोग्राम हड्डी का चूर्ण तथा 5 से 10 ग्राम दानेदार कीटनाशक का मिश्रण मिलाकर गड्ढे को अच्छी तरह से भर दें यदि गोबर सड़ी हुई खाद उपलब्ध न हो तो 5 केजी वर्मी कंपोस्ट का उपयोग कर के अक्टूबर से नवंबर माह में पेड़ लगाना चाहिए । पपीते को बहुत अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है जिसमें मुख्य रूप से नाइट्रोजन,फास्फोरस एवं पोटाश की अनुशंसित मात्रा को चार भागों में बाटकर जुलाई से अक्टूबर तक वृक्ष के नीचे पौधे से 45 सेंटीमीटर की गोलाई में देखकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए खाद देने के बाद हल्की सिंचाई अवश्य करना चाहिए। इसकी खेती से सफल उत्पादन के लिए जल प्रबंधन बहुत ही आवश्यक है जब तक पौधा फलन में नहीं आता है तब तक हल्की सिंचाई करते रहनी चाहिए जिससे पौधे जीवित रह सके गर्मी के दिनों में एक सप्ताह के अंतराल पर तथा जाड़े के दिनों में 15 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करती रहना चाहिए पौध लगाने के लगभग 6 महीने बाद मार्च व अप्रैल में पौधों में फूल आने लगते हैं बसंत ऋतु से लेकर ग्रीष्म ऋतु तक फल परिपक्व होते रहते हैं। डॉ सौरभ दुबे वैज्ञानिक पौधा संरक्षण ने बताया कि इसमें मुख्य रूप से डंपिंग ऑफ बीमारी लगता है जिससे बचाव के लिए बीज बोने से पहले रिडोमिल एम जेड (0.2 प्रतिशत) नमक कटक मार दवा से उपचारित कर लेना चाहिए ।सिंह ने बताया कि अगर वैज्ञानिक तकनीक को अपनाते हुए पपीते की खेती किया जाए तो प्रति पौधों से 50 से 60 किलोग्राम फलों की प्राप्ति होगी एवं 100 से 120 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलेगा।