मौत के मुहाने से लौटे उमेश, होमियोपैथिक उपचार ने दी नई जिंदगी

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विजय कुमार शर्मा बगहा/ रमेश ठाकुर रामनगर पश्चिम चंपारण, बिहार

कोरोना काल की त्रासदी न सिर्फ बीमारी बल्कि अनेक परिवारों के लिए आर्थिक व मानसिक संकट भी लेकर आई। इसी चुनौती भरे दौर में रामनगर प्रखंड के डैनमवरा निवासी उमेश शर्मा की जिंदगी लगभग खत्म होने की कगार पर पहुंच गई थी। डॉक्टरों ने जहां उनका पैर काटने की सलाह दे दी थी, वहीं कुछ चिकित्सकों ने कैंसर की आशंका तक जता दी थी। लेकिन बगहा के श्रीनगर स्थित होमिया सेवा अस्पताल में उपचार के बाद आज वही उमेश सामान्य जीवन जी रहे हैं। परिवार इसे “दूसरी जिंदगी” मान रहा है।

उमेश शर्मा बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के बाद उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। पहला इलाज रामनगर, नरकटियागंज तथा बेतिया में अंग्रेजी दवाइयों से कराया, लेकिन राहत नहीं मिली। इसके बाद पटना ले जाया गया, जहां नस काटने और जटिल सर्जरी जैसे गंभीर उपचार हुए। उन्होंने कहा—
“इलाज में हमने घर, जमीन और करीब दस लाख रुपये से ज्यादा खर्च कर दिए। इसके बाद लखनऊ रेफर कर दिया गया। वहां भी दोबारा सर्जरी हुई और साफ कहा गया कि पैर काटे बिना इलाज संभव नहीं है।”
कुछ डॉक्टरों ने कैंसर का संदेह जताया तो परिवार पूरी तरह टूट गया।

पैर कटवाने की तैयारी के साथ जब उमेश घर लौटे, तभी गांव के लोगों ने बगहा स्थित होमिया सेवा अस्पताल जाने की सलाह दी। उमेश बताते हैं—
“मैं पहली बार एंबुलेंस से डॉक्टर पदमभानु सिंह के पास पहुंचा। उस समय मेरा वजन मात्र 22 किलो था। उन्होंने कहा—‘आपका पैर नहीं कटेगा, मैं आपको ठीक कर दूंगा।’ आज मेरा वजन 60 किलो है और मैं सामान्य जीवन जी रहा हूं।”
वे बताते हैं कि मुश्किल समय में बेटे, पत्नी और साले ने उनका अद्भुत सहयोग किया, जो उनके हौसले का बड़ा सहारा बना।

होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. पदम भानु सिंह ने बताया कि जब मरीज उनके पास आया, तब चार शल्य चिकित्सकों की पर्ची और करीब 30 लाख रुपये तक के खर्च की जानकारी मौजूद थी। मरीज पूरी तरह कमजोर, चलने-फिरने में असमर्थ तथा दो दिन बाद पैर काटने की तिथि तय थी।
डॉ. सिंह के अनुसार—
“जांच के बाद हमने उसे भरोसा दिलाया कि उपचार संभव है। लगातार देखरेख और सही दवा से उसकी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। आज वह बिना किसी सहारे के पूरी तरह सामान्य व्यक्ति की तरह चलता-फिरता है।”

उमेश शर्मा की यह कहानी न सिर्फ क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गई है, बल्कि परिवार और ग्रामीण इसे जीवटता, विश्वास, और निरंतर उपचार का अद्भुत परिणाम मान रहे हैं। कोरोना काल की त्रासदियों के बीच यह मामला उम्मीद और विश्वास की मिसाल बनकर उभरा है।

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