दीपावली प्रजा,अन्न,प्राण व संवर्धन का पर्व है -पं-भरत उपाध्याय

0
15

विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार


लक्ष्मी केवल सिंधुतनया नहीं, लक्ष्मी मात्र विष्णु प्रिया नहीं और न लक्ष्मी केवल खनखनाती हुई स्वर्ण मुद्राएं हैं !लक्ष्मी का जो स्वरूप हमारी सनातन परंपरा मेंअर्चनीय ,पूजनीय है ,उसमें हर प्रकार के अंधकार से लड़ने की अदम्य जिजीविषा, अपराजेय उद्यमिता और अनिंद्य सौंदर्य है। सामान्य प्रचलन में तो लक्ष्मी शब्द संपत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः व चेतना का एक गुण है। जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसके पास होती हैं उसे लक्ष्मीवान, श्रीमान् कहते हैं, शेष को धनवान भर कहा जाता है। जिस पर श्री का अनुग्रह होता है वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़े पन से ग्रसित नहीं रहता। ऊर्जा से उत्साह से उद्यमिता से भर जाता है । जहां सरस्वती देवी नहीं, वहां लक्ष्मी देवी नहीं। जहां लक्ष्मी देवी नहीं, वहां सरस्वती देवी नहीं और जहां यह दोनों नहीं, वहां चंडिका देवी लीला करती हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here