केवल पुतला दहन से पर्व सार्थक नहीं होता,अपने जीवन के रावण को पहचानकर उसका अंत करना ही सच्ची विजय है!

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रमेश ठाकुर
रामनगर – नरकटियागंज, प०चम्पारण (बिहार)
02-10-2025

मैहर। विजयादशमी का महापर्व वर्ष में एक बार आता है और हर बार यह हमें एक नई चेतना, नई सोच और जीवन में सकारात्मकता की ओर बढ़ने का संदेश देता है। यह पर्व केवल रावण दहन का प्रतीक नहीं है बल्कि मनुष्य के भीतर बसे हुए अवगुणों और नकारात्मक प्रवृत्तियों के दहन का अवसर है। राष्ट्रीय अधिमान्य पत्रकार संगठन के जिलाध्यक्ष एवं वरिष्ठ चिंतक रवींद्र सिंह ‘मंजू सर’ मैहर ने इस अवसर पर समाज को संदेश देते हुए कहा कि यदि हम दशहरे के दिन केवल पुतला दहन तक ही सीमित रह गए तो इस पर्व का वास्तविक उद्देश्य अधूरा रह जाएगा। असली विजयादशमी तब होगी जब हम अपने भीतर की बुराइयों, नकारात्मक विचारों और अवगुणों को भी विसर्जित करेंगे।
उन्होंने कहा कि नवरात्रि के नौ दिनों तक साधना और शक्ति की उपासना करने के बाद विजयादशमी का दिन आत्ममंथन का दिन होता है। हम सभी को यह सोचना चाहिए कि इन नौ दिनों में साधना से हमें क्या मिला, और हमने अपने जीवन में किन गुणों को अपनाने का प्रयास किया। दशहरा का संदेश है कि हमें काम, क्रोध, अहंकार और नफरत जैसे भीतर छिपे शत्रुओं का त्याग करना होगा। यदि इन शत्रुओं का विसर्जन कर दिया जाए तो व्यक्ति के जीवन में एक नई दिशा और ऊर्जा का संचार होता है।
‘मंजू सर’ ने कहा कि हमारे जीवन का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है। आलस्य से प्रेरित होकर व्यक्ति अपने लक्ष्य से भटक जाता है और समय नष्ट कर देता है। विजयादशमी हमें आलस्य का विसर्जन करने और परिश्रम को अपनाने की सीख देती है। इसी तरह व्यर्थ की बातें, व्यर्थ की सोच और नकारात्मक संकल्प भी हमारे जीवन को पीछे धकेलते हैं। इनका त्याग करके ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि बुरे विचार बार-बार मन में आते हैं और व्यक्ति को गलत दिशा की ओर धकेलते हैं, ऐसे विचारों का विसर्जन करना ही इस पर्व का सबसे बड़ा संदेश है।
उन्होंने कहा कि दशहरा पर्व हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें अपने भीतर के रावण को पहचानना चाहिए। जिस प्रकार रावण के दस सिर उसके दस अवगुणों का प्रतीक थे, उसी तरह हमारे भीतर भी अनेक अवगुण छिपे रहते हैं। जब तक हम उनका त्याग नहीं करेंगे, तब तक हमारे जीवन में राम का वास नहीं हो सकता। विजयादशमी हमें यह संकल्प लेने का अवसर देती है कि हम अपने भीतर के रावण का दहन करें और अपने भीतर के राम को स्थापित करें। यही सच्ची विजय है और यही इस पर्व का वास्तविक महत्व है।
रवींद्र सिंह ‘मंजू सर’ ने कहा कि यदि समाज के प्रत्येक व्यक्ति ने छोटे-छोटे संकल्प लेकर अवगुणों का त्याग करना शुरू कर दिया तो केवल उसका जीवन ही नहीं, बल्कि पूरा समाज और राष्ट्र सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ सकता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि हिंसात्मक प्रवृत्तियों, स्वार्थपूर्ण भावनाओं और नकारात्मक सोच को त्यागकर ही हम सच्चे अर्थों में प्रगति कर सकते हैं। विजयादशमी का पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन जीने का सूत्र है।
उन्होंने कहा कि हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि यह पर्व अच्छाई की जीत और बुराई के अंत का प्रतीक है। राम ने रावण का वध किया, लेकिन उससे बड़ा वध वह है जो हम अपने भीतर करते हैं। यदि हमने नकारात्मकता का वध कर दिया, तो यह पर्व हर बार हमें एक नई शुरुआत देगा। यही असली दशहरा है, यही असली विजयादशमी है।
अंत में उन्होंने माता शारदा से प्रार्थना करते हुए कहा कि मैहर वाली शारदा माता सभी पर कृपा बनाए रखें और समाज को सही दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाएं। उन्होंने कहा कि यदि हम सब मिलकर इस पर्व के मूल संदेश को अपने जीवन में उतारें तो विजयादशमी केवल एक दिन का पर्व न रहकर जीवनभर हमारे लिए प्रेरणा बन सकती है।

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