श्रेष्ठ श्राद्ध कर्म श्रद्धापूर्वक करें -पं-भरत उपाध्याय

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विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार


बगहा अनुमंडल अंतर्गत मधुबनी प्रखंड स्थित राजकीय कृत हरदेव प्रसाद इंटरमीडिएट कॉलेज के पूर्व प्राचार्य पं०भरत उपाध्याय ने अपने सहयोगी वरिष्ठ शिक्षकों स्व०पं वशिष्ठ मणि एवं स्व०पं०युगुल किशोर त्रिपाठी के पुण्य तिथि पर हो‌ रहे श्राद्ध कर्म में भाग लेते हुए कहा कि
शास्त्रों कहा गया है कि पुत्र वाले धर्मात्माओं की कभी दुर्गति नहीं होती। पुत्र का मुख देख लेने से पिता पितृ-ऋण से मुक्त हो जाता है। पुत्र द्वारा प्राप्त श्राद्ध से मनुष्य स्वर्ग में जाता है। पूत का अर्थ है-पूरा करना। त्र का अर्थ है-न किए से भी पिता की रक्षा करना। पिता अपने पुत्र द्वारा इस लोक में स्थित रहता है। धर्मराज यमराज के मतानुसार जिसके अनेक पुत्र हों, तो श्राद्ध आदि पितृ-कर्म तथा वैदिक (अग्निहोत्र आदि) कर्म ज्येष्ठ पुत्र के करने से ही सफल होता है। भाइयों को अलग-अलग पिंडदान, श्राद्ध-कर्म नहीं करना चाहिए।
भ्रातरश्च पृथक् कुर्यु विभक्ताः कदाचन।
अर्थात् श्राद्ध के अधिकार के संबंध में शास्त्रों में लिखा है कि पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र न हो, तो स्त्री श्राद्ध करे। पत्नी के अभाव में सहोदर भाई और उसके भी अभाव में जामाता एवं दौहित्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। इस अवसर पर जिला अस्पताल पडरौना में निस्हाय लोगों को भोजन कराया‌ गया।पंडित कुलवंत मणि, जितेंद्र मणि, दिनेश कुमार गुप्ता, दिनेश दूवे सहित दर्जनों लोग उपस्थित रहे।

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