विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार
बगहा। शुभाश्रम परिसर स्थित निज निवास पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की मध्यरात्रि बेला में पूर्व प्राचार्य पं० भरत उपाध्याय ने भक्तगणों को संबोधित करते हुए कहा कि –
क्या आपने कभी सोचा है, कि श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में ही क्यों हुआ?

उन्होंने कहा कि भादो की अमावस्या की घनघोर अंधेरी रात में जब श्रीकृष्ण अवतरित हुए तो सबसे पहला चमत्कार यही हुआ कि जंजीरें टूट गईं और कपाट स्वतः खुल गए।
दरअसल, श्रीकृष्ण का अवतरण ही हर तरह की बेड़ियां काटने के लिए हुआ था।
समाज सुधारक और प्रथम पर्यावरणविद् पं० उपाध्याय ने कहा कि बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण ने लज्जा और भय की बेड़ियां काट दीं। गोवर्धन पूजा प्रारंभ कर उन्होंने समाज की रूढ़िवादी पद्धतियों को बदला और प्रकृति पूजा की परंपरा स्थापित की।
इस दृष्टि से वे धरती के प्रथम पर्यावरणविद् कहलाते हैं।

उन्होंने कहा –ध्यान दीजिए, श्रीकृष्ण राजा बनकर नहीं, बल्कि आम आदमी बनकर तानाशाह का अंत करते हैं। बिना सेना और राजनीतिक गठजोड़ के, एक सामान्य मानव द्वारा तानाशाह के विनाश की यह मानव इतिहास की अद्वितीय घटना है।
स्त्री गरिमा के रक्षक
नरकासुर की कैद से 16,000 कुमारियों को मुक्त कर उन्होंने उन्हें रानी का दर्जा दिया और स्त्री की गरिमा को समाज में स्थापित किया।
महाभारत में भी उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया –
“स्त्री सम्पत्ति नहीं, अर्धांगिनी है।”
इसी कारण उन्होंने पांडवों को भी दंड का भागी बनाया ताकि युगों-युगों तक यह संदेश जीवित रहे।
मित्रता का आदर्श

उन्होंने सुदामा जैसे गरीब को हृदय से मित्र माना और सच्ची मित्रता निभाकर आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श प्रस्तुत किया।
युगों-युगों तक प्रेरणा
पं० उपाध्याय ने भावपूर्ण शब्दों में कहा –
“श्रीकृष्ण मानव इतिहास के अद्वितीय नायक हैं। वह सच्चे मित्र, सच्चे पति, सच्चे भाई, सच्चे पुत्र और सबसे बड़े गुरु हैं। आज भी हमें पुकारना चाहिए—कन्हैया! आओ और हमारी बेड़ियां काटो।
भक्ति-भाव से गूंजा आश्रम
इस अवसर पर पं० योगिश मणि, अखिलेश शांडिल्य, पं० हेमंत तिवारी और प्रिया प्रियदर्शिनी ने भजन-कीर्तन कर भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा-अर्चना की। पूरा वातावरण “जय कन्हैया लाल की” के जयघोष से गूंज उठा।