वाल्मीकि नगर से नंदलाल पटेल की रिपोर्ट
सावन के तीसरी सोमवारी को लेकर जटाशंकर महादेव धाम में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है। मंदिर परिसर में भक्तों की लंबी कतारें देखी गईं। कांवरियों ने भगवान शिव का जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना की।यह आयोजन एक सामान्य धार्मिक यात्रा से बढ़कर शिवभक्ति और आस्था की एक जीवंत तस्वीर है। श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ की जयकारों के साथ अपने गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे हैं। ‘हर हर महादेव’ और बोल बम’ के जयघोषों से वातावरण भक्तिमय दिख रहा है।

मान्यता के मुताबिक इस महीने को भगवान शिवजी का महीना माना जाता है। इस महीने में भक्त भगवान शिवजी को खुश करने के लिए अलग-अलग तरीकों से उनकी पूजा करते हैं। इन्हीं तरीकों में से एक है कांवर यात्रा। सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ के भक्त केसरिया रंग के कपड़े पहनकर कांवर लाते हैं। कांवर को सावन के महीने में लाने के पीछे की मान्यता है कि इस महीने में समुद्र मंथन के दौरान विष निकला था, दुनिया को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष का सेवन कर लिया था। विष का सेवन करने के कारण भगवान शिव का शरीर जलने लगा। भगवान शिव के शरीर को जलता देख देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया। जल अर्पित करने के कारण भगवान शिवजी का शरीर ठंडा हो गया और उन्हें विष से राहत मिली।

इस बाबत पंडित अनिरुद्ध द्विवेदी ने बताया कि
कांवर सावन महीने की पहचान बन चुका है। मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव के नियमित पूजन के लिए महादेव मंदिर की स्थापना की और कांवर में गंगाजल लाकर शिवलिंग का पूजन किया। वहीं से कांवर यात्रा की शुरूआत हुई जो आज भी देश भर में प्रचलित है।
सावन में शिवजी की पूजा से सब कुछ संभव
श्रद्धालु तपती सड़क और पथरीले रास्तों पर नंगे पांव कांवर लेकर चल रहे हैं।रामनगर से आए एक कांवरिया ने बताया कि हम लोग भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक के लिए जा रहें हैं, जब तक जल नही चढ़ा लेते तब तक विश्राम नहीं करेंगे। सावन में शिवजी की पूजा से सब कुछ संभव है।
भोलेनाथ को प्रसन्न करने की प्रबल इच्छा लिए, शिवलिंग पर जलाभिषेक करने की चाह लिए, कांवरिये शिवमंदिरों की ओर बढ़े जा रहे हैं।