दिव्य ज्ञानवाले विश्व के प्रथम अनुवादक संजय ने दिव्यांग धृतराष्ट्र को गीता सुनाया -पं-भरत उपाध्याय

0
57

विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार


मधुबनी,गीता जयंती सप्ताह समारोह को सम्बोधित करते हुए पूर्व प्राचार्य पं०भरत उपाध्याय ने कहा कि -हम अक्सर देखते हैं कि गीता को घर के पूजा-स्थल में लाल कपड़े में लपेटकर रख दिया जाता है।
कभी-कभार कोई बुज़ुर्ग उसका पाठ करते हुए दिखते हैं…
और बस — गीता वहीं तक सीमित हो जाती है!पर भाइयों और बहनों, गीता पूजा-स्थान की वस्तु नहीं है—यह आपके बैठक-कक्ष में होनी चाहिए।
क्योंकि गीता वृद्धों के लिए नहीं, युवाओं के लिए लिखी गई है!
हर श्लोक जीवन के गहनतम रहस्यों को खोलता है।
गीता को केवल सुनने या श्रद्धा से रख देने से मुक्ति नहीं मिलती—
मुक्ति तब मिलती है जब गीता को पढ़ा जाए, समझा जाए और जीवन-चरित्र में उतारा जाए।
और हाँ—मुक्ति का अर्थ संसार से भागना या वैराग्य ओढ़ लेना नहीं होता।बहुत लोग भ्रम में रहते हैं कि गीता पढ़ने से इच्छाएँ छोड़नी पड़ेंगी।नहीं!
गीता त्याग नहीं कराती—
वह सांसारिक इच्छाओं से खेलना सिखाती है।बंधन नहीं, खिलाड़ी-भाव देती है।जीवन को बोझ नहीं,कर्तव्य-योग का उत्सव बना देती है।यही कारण है कि गीता आज भी हर विचारक, हर कर्मवीर, हर युवा के लिए सदैव प्रासंगिक है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here