नारायणी नदी का कटाव मिटा रहा धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व।
प्राचीन हनुमान मंदिर और अंतिम संस्कार स्थल भी कटाव से प्रभावित।
विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार
बगहा। चखनी रजवटिया पंचायत स्थित ऐतिहासिक राज वाटिका घाट, जो वर्षों से सनातन धर्म-संस्कृति की पहचान रहा है, अब अस्तित्व के गंभीर संकट से गुजर रहा है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां स्नान–दान के लिए लाखों श्रद्धालु जुटते थे, महीनों तक मेला चलता था और दुकानें व नाटक कंपनियां लोगों के मनोरंजन का माध्यम बनती थीं।लेकिन हाल के वर्षों में गंडकी (नारायणी) नदी के तेज कटाव ने घाट का स्वरूप बदल दिया है। सैकड़ों घर नदी में समा गए और लोग विस्थापन को मजबूर हुए। कटाव के कारण धर्मस्थली का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्ति के कगार पर पहुंच चुका है। राजनीतिक, सामाजिक और सरकारी स्तर पर प्रभावी पहल न होने से हालात और बिगड़ते जा रहे हैं।

घाट परिसर का प्राचीन हनुमान मंदिर भी अब जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। इसी स्थिति को देखते हुए स्थानीय सामाजिक एवं युवा संगठनों ने ‘राज वाटिका धाम विकास मंच’ के माध्यम से ग्रामीणों की बैठक कर संरक्षण अभियान शुरू किया है। मंच के अध्यक्ष विभोर शुक्ला ने कहा कि राज वाटिका धाम हमारी सदियों पुरानी सनातनी धरोहर है, जिसे बचाने के लिए मंच के युवा किसी भी स्तर तक प्रयास करने को तैयार हैं। उन्होंने बगहा, भैरोगंज, चौतरवा सहित आसपास के गांवों के लोगों से अपील की कि सभी मिलकर घाट के संरक्षण में आगे आएं।

उन्होंने बताया कि नारायणी नदी कटाव के कारण हिंदू समाज का अंतिम संस्कार स्थल भी समाप्त हो चुका है, पर अब तक सुरक्षा हेतु कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। वहीं मुस्लिम समुदाय के अनवर हुसैन ने कहा कि यह सांस्कृतिक धरोहर सभी की आस्था से जुड़ी है और मुस्लिम समाज भी इसके संरक्षण में अपना पूरा सहयोग देगा। उन्होंने बताया कि कटाव से उनके समुदाय का कब्रिस्तान भी खतरे में है। इस मौके पर, विशाल तिवारी, शाहबाज अंसारी, गुड्डू यादव, टेनी यादव, मोहन राम, चनू शाह, भनू शाह, सुभाष यादव सहित आसपास पंचायत के कई समाजसेवी उपस्थित रहे।






