विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार
स्व भाषा के छठ लोक गीत, स्व वेशभूषा साड़ी-धोती का ही उपयोग सामूहिक भजन अर्थात घरों एवं घाटों पर सामूहिक पूजनअपने भवन की सज्जा हिन्दू रीति-नीति के अनुसार – आरत, चावल के आटे से बने पारंपरिक सजावटी घोल, सिंदूर, आम के पल्लव, गेंदे के फूल, केले के पत्ते आदि से छठ घाटों के भ्रमण में पूर्ण सात्विकता का भाव ,सामूहिक भोजन नहाय-खाय एवं खरना का महाप्रसाद।
नागरिक कर्तव्य सामाजिक स्वच्छता का विशेष अभियान- छठ घाटों तक जाने वाली सड़कों की, छठ घाटों की विशेष स्वच्छता ,छठ घाटों पर भीड़ नियंत्रण की सामाजिक व्यवस्था।
कुटुम्ब प्रबंधन छठ पूजा के समय देश-विदेश में बिखरा हुआ परिवार एक ही छत के नीचे छठ महापर्व मनाता है।यह पर्व संयुक्त परिवार व्यवस्था की महत्व को वर्ष में एक बार प्रत्यक्ष अनुभव कराता है।परिवार के सभी महिलाओं को स्वर-से-स्वर मिलाकर सामूहिक गीत गाने का अभ्यास कराता है।परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर ठेकुआ जैसे पारंपरिक पकवान बनाने एवं प्रसाद के रूप में ग्रहण करने का आनंद उठाते हैं।छठ घाटों पर पारिवारिक एकजुटता का भाव सहज रूप से दिखता है। पर्यावरण संरक्षण- हम भारतीय पर्यावरण संरक्षक नहीं अपितु पर्यावरण पूजक हैं। इस भाव का स्वाभाविक प्रस्फुटन है छठ महापर्व।भगवान सूर्य इस ब्रह्मांड के अनन्य ऊर्जा के स्रोत हैं। अतः उनके प्रति हमारी कृतज्ञता का भाव है यह छठ पूजन। अपना घर-परिवेश, गलियों,जल स्रोतों के सामूहिक स्वच्छता वर्ष में कम-से-कम एक बार छठ पूजा के बहाने हो जाती है।ऋतु फलों का उपयोग भी पर्यावरण संरक्षण के महत्व को बढ़ावा देता है।
गौ माता के अमृत तुल्य दूध के उपयोग, गोबर का पूजन एवं स्वच्छता में उपयोग गौ माता के संरक्षण को बढ़ावा देती है।
छठ पूजा के उपरांत लटलटिया (अपामार्ग), माटी पूजन भी पर्यावरण पूजन का अनुपम उदाहरण है। सामाजिक समरसता- छठ घाटों पर सामाजिक समरसता का सहज भाव देखा जा सकता है। एक साथ सामूहिक अर्घ्य दान करना।
एक दूसरे से मिल- बाँटकर प्रसाद ग्रहण करना।इस पर्व में कोई पुरोहित नहीं होते अर्थात प्रत्येक छठ व्रत करने वाला ही पुरोहित होता है। समाज का हर वर्ग कंधे से कंधा मिलाकर छठ घाटों एवं गलियों की सामूहिक स्वच्छता के अभियान में लगते हैं।इस तरह से छठ महापर्व समाज, राष्ट्र तथा विश्व कल्याण का महोत्सव है।*






