विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार
बगहा,प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं प्रकृति प्रेमी पूर्व प्राचार्य पंडित भरत उपाध्याय ने बताया कि-
छठ पूजा प्रकृति के प्रति संवेदनशील होने की संस्कृति है। यह पूजा प्रकृति की उपासना और संतुलन का पर्व है। धर्म ग्रंथो में सूर्य की रश्मियां उनकी पत्नियां मानी जातीं हैं -उषा व प्रत्यूषा ।प्रातः काल सूर्य की पहली किरन उषा, व सायंकाल सूर्य की अंतिम किरन प्रत्युषा को अर्घ्य दिया जाता है ।सूर्य को अर्घ्य देने और प्रणाम करने से हमें ऊर्जा ,उमंग, शक्ति ,विभूति और एक दिव्य जीवन शक्ति प्राप्त होती है। प्रकृति का संरक्षण स्वयं के अस्तित्व का संरक्षण है। पेड़ पौधे प्रकृति की आत्मा हैं। हमारे द्वारा लगाए गए पौधे ,सिर्फ हमें ही लाभ नहीं पहुंचाते, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को लाभ पहुंचाते हैं ।पेड़ों पर कई जीव जंतु अपना घर बनाते हैं। यदि हम प्राकृतिक आपदा से बचना चाहते हैं ,तो हमें पेड़ों के संरक्षण की ओर कदम उठाने ही होंगे ।जब पृथ्वी संरक्षित होगी तभी मानव जीवन भी सुरक्षित होगा।

शुद्ध वायु, जल, प्रकाश, रश्मि धारा से ही जीवन तत्व की रक्षा होगी । छठ पर्व में प्रकृति संरक्षण का दिव्य संदेश है।अत: धरती की संरक्षण हेतु हम प्राकृतिक जीवन के अभ्यासी बनें। छठ पूजा में सूर्य, नदी, फल, अनाज, बांस का सूप, गन्ना आदि सब प्राकृतिक हैं ।यह पर्व प्रकृति का सम्मान और उसका संरक्षण करने की संस्कृति को संजोए हुए हैं।
बिहार सरकार ने विद्यालयों के माध्यम से इस वर्ष छठ पर्व को महत्वपूर्ण बना दिया है। सरकारी तथा गैर सरकारी सभी शिक्षण संस्थानों में बच्चों ने गीत-संगीत और झांकी के माध्यम से छठ पर्व की विशेषता प्रस्तुत किया।