विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार
बगहा अनुमंडल अंतर्गत मधुबनी प्रखंड स्थित राजकीय कृत हरदेव प्रसाद इंटरमीडिएट कॉलेज मधुबनी के पूर्व प्राचार्य पं०भरत उपाध्याय के निज निवास पर पूर्व प्रधानाचार्य पंडित जगदंबा उपाध्याय व्याकरणाचार्य की अध्यक्षता में हिंदी दिवस के अवसर पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अपने संबोधन में पूर्व प्राचार्य पंडित भरत उपाध्याय ने कहा कि हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार व उसके उपयोग के प्रोत्साहन के लिए समर्पित आज का दिवस जिसे हिन्दी भाषा दिवस कहते हैं।हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी। क्योंकि भारत मे अधिकतर क्षेत्रों में ज्यादातर हिन्दी भाषा बोली जाती थी इसलिए हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किये।
जनतांत्रिक आधार पर हिंदी विश्व भाषा है क्योंकि उसके बोलने-समझने वालों की संख्या संसार में तीसरी है। विश्व के 132 देशों में जा बसे भारतीय मूल के लगभग 2 करोड़ लोग हिंदी माध्यम से ही अपना कार्य निष्पादित करते हैं। एशियाई संस्कृति में अपनी विशिष्ट भूमिका के कारण हिंदी एशियाई भाषाओं से अधिक एशिया की प्रतिनिधि भाषा है। हिंदी में शब्दों की संख्या 20,000 से बढ़कर 1.5 लाख हो गई है।परन्तु
आज हिंदी भाषा की हालत यह है दफ्तर में कोई बैठक नहीं करता, सब मीटिंग अटेंड करते हैं। बच्चे गृह कार्य नहीं करते होमवर्क करते हैं।मोबाइल पर मिस्ड कॉल तो सबको समझ आता है ,लेकिन अगर कोई कहे चूका हुआ काल, तो सामने वाला समझेगा कि मजाक कर रहे हैं। वातानुकूलित बोलते ही हम ठिठक जाते हैं ,लेकिन एसी सुनते ही तुरंत ठंढक का एहसास हो जाता है। हास्य का पहलू यह है कि हमने हिंदी को इतना अंग्रेजी में मिला दिया है कि खुद अंग्रेज भी कंफ्यूज हो जाए। सुनिए भाई !आज मेरा नेटवर्क डाउन था ,तो मैं ऑनलाइन क्लास ज्वाइन नहीं कर पाया। लेकिन अब मैं कूल हूं ,क्योंकि लंच करके सीधा घर ड्रॉप हो गया। अगर यही बात कोई संस्कृतनिष्ठ हिंदी में कहे तो वक्ता भी पसीना पसीना हो जाए और श्रोता भाग खड़े हों ।असल आलोचना यही है की हिंदी हमारे लिए सिर्फ एक “दिवस” तक सीमित हो गई है ।बाकी दिन हम उसे कोने में रख देते हैं जैसे पुराने रेडियो को !हम सब हिंदी पर गर्व करते हैं! मगर व्यवहार में आधी- अधुरी हिन्दी ही बोलते हैं। हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं -यही हमारी असली भाषा के प्रति सच्चा सम्मान होगा! पूर्व प्रधानाचार्य पंडित श्याम बिहारी पांडेय एवं पंडित महेश्वर उपाध्याय ने भी अपना विचार रखा। अंत में अपने अध्यक्षीय संबोधन में पंडित जगदंबा उपाध्याय ने इस तरह के आयोजनों की महत्ता पर प्रकाश डाला।