विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार
बेतिया/बिहार। रविवार को बिहार समेत पूर्वांचल के विभिन्न जिलों में माताओं ने अपने पुत्रों की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के साथ निर्जला जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत धूमधाम से संपन्न किया। यह व्रत विशेषकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में आस्था और श्रद्धा के साथ किया जाता है। सुबह से ही व्रती माताओं ने निर्जल उपवास रखकर भगवान जीमूतवाहन की आराधना आरंभ की। दिनभर पूजा-पाठ के बाद शाम को सैकड़ों महिलाएं नदी घाटों और तालाबों के किनारे एकत्र हुईं। गाजे-बाजे के साथ माताएं विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना कर संतान की लंबी उम्र, संकट निवारण और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करती देखी गईं। कई स्थानों पर नवविवाहित जोड़े और नवजात बच्चों की माताओं ने भी पहली बार यह व्रत पूरे उत्साह के साथ किया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत की परंपरा भगवान जीमूतवाहन की कथा से जुड़ी हुई है। इस व्रत में माताएं पूरे दिन जल तक ग्रहण नहीं करतीं। निर्जला उपवास रखकर वे अपने पुत्रों के लिए कठिन तपस्या करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत से संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। स्थानीय घाटों पर व्रती माताओं की भीड़ देखने लायक रही। महिलाएं परंपरागत गीत गाकर और लोककथाओं का पाठ करते हुए अपने पुत्रों के मंगल की कामना करती रहीं। अगले दिन सुबह स्नान-पूजन के बाद पारण कर व्रत का समापन किया जाएगा। धार्मिक विद्वानों का कहना है कि यह व्रत मातृत्व की निस्वार्थ भावना और संतान के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक है। इसे निभाना कठिन जरूर है, लेकिन माताएं पूरे विश्वास और श्रद्धा से इसे करती हैं।