प्लास्टिक उद्योग की मार से विलुप्त होते जा रहे है प्राचीन परंपरागत उद्योग धंधे।

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युवा वर्ग परंपरागत उद्योग धंधों से भाग रहे हैं कोसो दूर।


अनिल कुमार शर्मा मझौलिया पश्चिम चंपारण।


प्लास्टिक उद्योग ने परंपरागत उद्योगों को चौपट करके रख दिया है। प्राचीन काल से ही नरकट से सुंदर-सुंदर चटाई बनाने की परंपरा आ रही थी। देहाती क्षेत्र के लोग व्यापक स्तर पर नरकट से चटाई का निर्माण करते थे पूरा परिवार इस पुस्तैनी धंधे में लगा रहता था। परिवार का भरण पोषण अच्छे ढंग से हो जाता था। लेकिन आज के दौर में प्लास्टिक से निर्मित चटाई इस प्राचीन परंपरागत उद्योग को तहस-नहस करके रख दिया है।
जानकारों का कहना है कि नरकट से बने हुए चटाई को बिछाकर लोग बैठते और सोते भी थे। चटाई पर बैठकर खाना पीना होता था। चौकी और पलंग पर भी बिछाया जाता था। सभा या अन्य आयोजन में आए हुए लोगों को बैठाया जाता था।

मझौलिया सुगौली नरकटियागंज रामनगर आदि चीनी मिलों में चटाई को बिछाकर उस पर प्लास्टिक रखकर चीनी का बोरा रखने के काम में आज भी आता है लेकिन आम लोग से नरकट से निर्मित चटाई कोसों दूर दिख रहा है। कहीं कहीं चटाई से झोपड़ी की दीवाल भी बना ली जाती थी। लेकिन आज सब कुछ समाप्ति की ओर है। प्रखंड क्षेत्र के शेख मझरिया पंचायत के वार्ड नंबर 5 में नरकट से चटाई बनाने का कार्य आज भी बुजुर्गों द्वारा किया जा रहा है। जबकि युवा वर्ग इसकी तरफ देखना भी मुनासिब नहीं समझता है। उगनारायण मुखिया अमेरिका मुखिया रामभरोस मुखिया सिपाही मुखिया शंभू मुखिया वीरेंद्र मुखिया रुदल मुखिया बुनी मुखिया महेंद्र मुखिया आदि ने बताया कि प्लास्टिक उद्योग के कारण हम लोगों के पुश्तैनी धंधे पर काफी घातक असर हुआ है।

आज दिन भर में ज्यादा से ज्यादा चार चटाइयां बनती है जो ₹30 से ₹40 के भाव में बिकती है ।जिससे मेहनत मजदूरी भी नहीं निकल पाता है। आज बाजार में और घर-घर प्लास्टिक निर्मित चटाइयां बिक रही है जिसके कारण हम लोगों की मांग काफी घट गई है। उन्होंने बताया कि मझरिया मन से नरकट मिलता है जिसको सुखाकर साफ सुथरा करके चटाई बनाया जाता है।
इन्होंने बताया कि हमारी युवा पीढ़ी इससे कोसों दूर भाग खड़ी हुई है। युवा वर्ग दिल्ली पंजाब हरियाणा गुजरात जाकर काम करना अच्छा समझता है। अन्य रोजी रोजगार करना पसंद करता है लेकिन इस पुश्तैनी परंपरा में कहीं से भी शामिल होना नहीं चाहता है।


गौरतलब हो कि प्लास्टिक उद्योग ने हमारी प्राचीन पुश्तैनी परंपरा को समाप्ति के कगार पर ला खड़ा किया है। आने वाले समय में हाथ से निर्मित चटाई पंखा डेली दउडा दिया ढकना आदि देखने को नजर नहीं आएंगे। गांव देहात के बुजुर्गों को अपने हुनर को बंद कर देना पड़ेगा। आधुनिकता का असर इस कदर होगा कि समस्त परंपरागत पुश्तैनी धंधा
बंद हो जाएगा और बुजुर्ग भी बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर हो जाएंगे।

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