हल्दी अदरक गन्ने आदि की फसल से भी लाभदायक है ओल की खेती।
नेपाल और दुबई में भी भेजी जाती है ओल।
अनिल कुमार शर्मा मझौलिया पश्चिमी चंपारण बिहार
पश्चिम चंपारण जिले के मझौलिया प्रखंड स्थित राजाभार वार्ड नंबर 1 निवासी पंचायत के पूर्व मुखिया देवनारायण सहनी के पुत्र चंदन सहनी ओल की खेती करके मालामाल हो रहे हैं।
चंदन सहनी ने बताया कि वर्ष 2000 में वह कोलकाता घूमने गए थे। जहां पर ओल की खेती संबंधी जानकारी प्राप्त हुई।
वहां से बीज लाकर उन्होंने रोपाई की जिसका परिणाम अच्छा निकला। उत्पादन अच्छा हुआ। मात्र 10 धुर में खेती की शुरुआत करने पर लाभदायक साबित हुआ। तब से लेकर आज तक लगभग 7 बीघा जमीन पर ओल की खेती कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इसमें रखरखाव की कोई समस्या नहीं है। हल्दी की खेती की तरह इसकी भी खेती होती है। मार्च से लेकर जून महीने तक इसकी रोपाई होती है। लगभग 6 महीने में इसकी फसल तैयार हो जाती है। भूमि जोताई के समय मवेशी खाद दिया जाता है। उन्होंने बताया कि इसके भंडारण की भी कोई चिंता नहीं होती है। 5 किलो से लेकर 10 किलो तक वजन होता है तथा एक कट्ठा जमीन में 140 किलो पैदावार होता है। इसका बाजार भाव₹2000 से 5000 रुपए प्रति क्विंटल तक मिलता है। बेतिया मोतिहारी सिवान मुजफ्फरपुर पटना आदि के व्यापारी घर पर आकर उत्पाद को ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि पड़ोसी देश नेपाल में भी इसकी मांग है। आंध्र प्रदेश के व्यापारी प्रतिवर्ष फसल निकालने के समय आते हैं और उचित मूल्य देकर ओल की फसल ले जाते हैं। अपने यहां के बाजारों में इसकी बिक्री तो करते ही है इसको खाड़ी देश दुबई में भी भेजते हैं जहां इसकी मांग है।
बताते चले की इस क्षेत्र में हल्दी अदरक लहसुन आलू गोभी बैगन और गन्ने की खेती व्यापक पैमाने पर होती है। लेकिन इन सभी फसलों से ज्यादा लाभदायक ओल की खेती साबित हो रही है। इसमें फसल के सड़ने गलने की चिंता नहीं रहती है। कीटों का प्रकोप नहीं होता है। तीन बार सिंचाई करना पड़ता है ।
किसान चंदन सहनी ने बताया कि कृषि अनुसंधान केंद्र माधोपुर से उनको अनुदान भी मिला है। उन्होंने किसानों से अपील किया है कि मेरे यहां बीज उपलब्ध है। किसान अपने खेतों में ओल की खेती करें और लाभ उठाकर अपने जीवन में खुशहाली लावे।
उन्होंने सरकार से ओल की खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की योजना बनाने की मांग की है।