विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार
पूर्व प्राचार्य पं०भरत उपाध्याय ने सभी श्रेष्ठ विद्वान शिक्षक आचार्य गण का शिक्षक दिवस पर अभिनंदन करते हुए कहा कि – शिक्षण पर्दे के पीछे की विधा है अर्थात समाज में हम योगदान अनुसार भले ही न दिखें, परन्तु समाज के पीछे होते हम ही हैं और हम ही वो हैं जो पर्दे के पीछे से समाज को दिशा दिखाते हैं।
गुरु की भूमिका, आप से ही तय होती है, आप स्वयं के दृष्टा है।
समर्पण, भाव, धैर्य, निरंतर प्रयास और आत्ममुग्धता का त्याग ही आपको सही दिशा प्रदान करता है। वाद-विवाद से दूर रहते हुए अपने कार्य के प्रति समर्पण ही आपको शिक्षक बनाए रह सकता है। जीविका हेतु मिलने वाला धन आपके दायित्व का निर्धारण मात्र नहीं है आपके कर्तव्यों के प्रति बोध व सजगता रखना ही आपके शिक्षक होने की निष्ठा को दर्शाता है।

और सच पूछिए तो शिक्षक मात्र उसे कहना उचित नहीं जो इसके लिए जीविका लेता है और यह उसका पेशा (profession) है। बल्कि समाज में रहते हुए हम किसी भी प्रोफेशन में हो अपने कृत्यों, अपने विचारों, आदतों, व्यवहार में वो गुण झलकने चाहिए जो समाज को आइना दिखाते हैं।

जब समाज आपको देख रहा होता है तो आपके कृत्य ही आपके माध्यम से समाज के लिए सीख बनती जाती है। सीखने के लिए अथाह है, आप हर व्यक्ति, वस्तु, पशु, पक्षी, जीव से कुछ ना कुछ सीख रहे होते हैं अतः प्रकृति का सम्मान बनाये रखना यह हमारे बोध में सदा रहना चाहिए।
क्या सीखाना है और कितना सीखाना है, सबके बीच अच्छा संतुलन रखना ही आपको आदर्श शिक्षक बनाता है। समस्त शिक्षकगणों का सदा की भांति बारम्बार अभिनन्दन ।