विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार
मधुबनी, बगहा अनुमंडल अंतर्गत मधुबनी प्रखंड स्थित राजकीय कृत हरदेव प्रसाद इंटरमीडिएट कॉलेज के पूर्व प्राचार्य पं०भरत उपाध्याय ने अपने परिवारीजन के साथ पौधरोपण करते हुए कहा कि
सावन के महीने में जहां आस्था का सैलाब बम- बम करते हुए मंदिरों में एक लोटा जल चढ़ाकर मस्त हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ भीषण गर्मी और उमस से बाल वृद्ध ,विद्यार्थी, पशु , पक्षी और किसान चिल्ला चिल्ला कर इंद्रदेव से बरखा करने की गुहार लगा रहे हैं, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। जिसका एकमात्र निदान वृक्षारोपण है ताकि आने वाले समय में इस पर्यावरणीय परिस्थिति से बचा जा सके।
यह सत्य है कि पिछले 68 सालों में पीपल, बरगद और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना बन्द किया गया है। पीपल “कार्बन डाई ऑक्साइड” का 100% एबजॉर्बर है, बरगद 80% और नीम 75 % इनके बदले लोगों ने विदेशी यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया। जो जमीन को जल विहीन कर देता है। आज सभी दूर इनकी जगह यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ो ने ले ली है।
अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नहीं रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही, और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही ।
आज की आवश्यकता यह है कि हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल का पेड़ लगायें। तो आने वाले कुछ सालों बाद इसका असर दिखाई देने लगेगा।
प्रदूषण मुक्त भारत होगा। वैसे आपको एक और जानकारी दे दी जाए । पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है। जिसकी वजह शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं । वैसे भी पीपल को वृक्षों का राजा कहते है । इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए । मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेवच। पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम, वृक्षराज नमस्तुते। अब करने योग्य कार्य ।
इन जीवनदायी पेड़ों को ज्यादा से ज्यादा लगाने के लिए समाज में जागरूकता बढ़ायें ।
बाग बगीचे बनाइये, पेड़ पौधे लगाइये, बगीचों को फालतू के खेल का मैदान मत बनाइये।
जैसे मनुष्य को हवा के साथ पानी की जरूरत है।
वैसे ही पेड़ पौधों को भी हवा के साथ पानी की जरूरत है ।
बरगद एक लगाइये, पीपल रोपें पाँच।
घर घर नीम लगाइये, यही पुरातन साँच।
विश्वताप मिट जाये, होय हर जन मन गदगद।
धरती पर त्रिदेव हैं, नीम पीपल और बरगद।।
जब तक हम पौधरोपण नहीं करेंगे, प्रकृति हमारे प्रतिकुल ही रहेगी!
कोई बेबस, कोई बेताब, कोई चुप ,कोई हैरान! ऐ जिंदगी, तेरी महफ़िल के तमाशे खत्म क्यों नहीं होते!