विजय कुमार शर्मा बगहा पश्चिम चंपारण, बिहार
अदृश्य रक्षा-हाथ पर बान्धने वाला रक्षा -सूत्र हमारी रक्षा चार सूत्रों से करता है -पहला, एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक ज्ञान की परंपरा। दूसरा, समाज तथा देश को एक करने का ज्ञान। तीसरा विविध व्यवसायों का समन्वय और रक्षा। चौथा प्रकृति तथा मनुष्य की परस्पर निर्भरता,आदि दैविक विपत्तियों से रक्षा।रक्षाबंधन, जिसे ‘राखी’ के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। यह पर्व भाई और बहन के पारस्परिक स्नेह, सम्मान और कर्तव्य की भावना को अभिव्यक्त करता है। इस वर्ष, 2025 में, यह त्योहार 9 अगस्त, शुक्रवार को मनाया जाएगा। यह पर्व मूलतः एक बहन द्वारा अपने भाई की कलाई पर ‘राखी’ नामक पवित्र सूत्र बांधने की रस्म पर केंद्रित है, जिसके माध्यम से बहन अपने भाई के दीर्घायु और समृद्धि की कामना करती है और भाई आजीवन अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेता है। यह अनुष्ठान मात्र एक धार्मिक क्रिया न होकर, मानवीय संबंधों की गहराई और सामाजिक दायित्वों का प्रतीक है।रक्षाबंधन की परंपरा का उद्गम भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित है।
महाभारत काल की एक प्रसिद्ध कथा इस पर्व के मूल में है। जब शिशुपाल के वध के दौरान भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा, तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया। इस क्रिया को कृष्ण ने रक्षा के बंधन के रूप में स्वीकार किया और द्रौपदी की रक्षा का वचन दिया, जिसे उन्होंने कुरु-सभा में चीरहरण के समय पूरा किया। यह घटना रक्षाबंधन के मूल भाव – ‘रक्षा का वचन’ – को दर्शाती है।
इतिहास में भी इसके कई संदर्भ मिलते हैं। 16वीं शताब्दी में, चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर गुजरात के शासक बहादुर शाह के आक्रमण से अपनी और अपने राज्य की रक्षा का अनुरोध किया था। हुमायूँ ने इस राखी का सम्मान करते हुए अपनी बहन की रक्षा के लिए सैन्य सहायता भेजी थी। यह घटना दर्शाती है कि यह बंधन धार्मिक या पारिवारिक सीमाओं से परे, सम्मान और कर्तव्य का प्रतीक बन गया था।
रक्षाबंधन का महत्व सिर्फ पौराणिक या ऐतिहासिक घटनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समकालीन भारतीय समाज में भी गहरा प्रभाव रखता है। पारिवारिक संबंधों का सुदृढ़ीकरण: यह पर्व परिवारों को एकजुट करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। काम या विवाह के कारण दूर रहने वाले भाई-बहन इस दिन एक-दूसरे से मिलते हैं, जिससे पारिवारिक बंधन और भी मजबूत होते हैं।राखी का धागा केवल एक सूत्र नहीं है, बल्कि यह भाई और बहन के बीच सामाजिक और भावनात्मक सुरक्षा के वादे का प्रतीक है। यह त्योहार भाई को अपनी बहन की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाता है, जबकि बहन को भी अपने भाई के कल्याण के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर देता है। यह पर्व पारंपरिक रूप से लैंगिक भूमिकाओं को मजबूत करता है, जहाँ भाई को रक्षक के रूप में और बहन को सम्मान के पात्र के रूप में देखा जाता है।
सामाजिक सद्भाव: कई समुदायों और समूहों में, यह पर्व खून के रिश्ते से परे, आपसी सम्मान और सद्भाव का प्रतीक बन गया है। बहनें अपने मुंहबोले भाई या दोस्तों को राखी बांधती हैं, जिससे सामाजिक संबंधों में मजबूती आती है।
रक्षाबंधन का त्योहार देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग परंपराओं और नामों से मनाया जाता है।यह पर्व मुख्य रूप से उत्तरी राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इन क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से भाई-बहन के संबंधों को विशेष महत्व दिया जाता है। पश्चिम भारत: महाराष्ट्र और गुजरात में भी यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दक्षिण भारत: केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में’अवानीअवित्तम’ नामक एक संबंधित पर्व मनाया जाता है। इस दिन जनेऊधारी ब्राह्मण अपना पुराना जनेऊ बदलकर नया जनेऊ धारण करते हैं, जो एक प्रकार से आत्म-शुद्धि और ज्ञान के बंधन का प्रतीक है।पूर्वी भारत: ओडिशा में इसे ‘गम्हा पूर्णिमा’ (Gamha Purnima) कहा जाता है, जहाँ किसान धान की बुआई पूरी होने पर पूजा करते हैं और गाय-बैलों को भी सजाते हैं।
रक्षाबंधन एक बहुआयामी पर्व है जो भारतीय समाज के ताने-बाने में गहराई से बुना हुआ है। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भाई-बहन के प्रेम, सम्मान और आपसी कर्तव्य का एक शक्तिशाली प्रतीक है। इसका ऐतिहासिक और पौराणिक आधार इसे एक गहरी सांस्कृतिक पहचान प्रदान करता है, जबकि इसका सामाजिक महत्व पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने और सद्भाव को बढ़ावा देने में निहित है। इस प्रकार, रक्षाबंधन एक ऐसा पर्व है जो प्राचीन परंपराओं को आज के आधुनिक समाज में भी जीवंत बनाए रखता है, और मानवीय रिश्तों की स्थायी प्रासंगिकता को स्थापित करता है।