बाल्मीकि नगर के नर देवी मंदिर में भक्तों की पूरी होती हैं,मन्नत।

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भारत- नेपाल सीमा पर टाइगर रिजर्व में प्राचीन काल से स्थापित है,मंदिर।

वाल्मीकी नगर से।अभिमन्यु गुप्ता की रिपोर्ट

इंडो-नेपाल सीमा पर वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के घने वन क्षेत्र में प्राचीन काल से स्थापित आस्था के महा केंद्र नरदेवी मंदिर में नवरात्र के अवसर पर भक्त श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ पड़ी है। शारदीय और चैत नवरात्र में सैकड़ों भक्तों की भारी भीड़ यहां प्रतिदिन उमड़ती है। इसके बावजूद सालों भर माता के दर्शन के लिए दूर दराज क्षेत्रों , पड़ोसी राज्य उत्तर- प्रदेश और नेपाल से भक्तों का तांता लगा रहता है। भक्तों का मानना है,कि माता के दरबार में पहुंचने मात्र से ही उनकी मन्नते पूरी हो जाती हैं। और उनके दुखों का निवारण हो जाता है। भक्तों की माने तो पूर्व समय में मंदिर की परिक्रमा माता की सवारी बाघ के द्वारा प्रतिदिन सुबह शाम की जाती थी। भक्त शाम के बाद मंदिर में भय वश जाने से गुरेज किया करते थे।

नर बलि के कारण पड़ा नाम नर देवी

जानकारों की माने तो नर देवी मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इतिहास के दो वीर योद्धा आल्हा उदल के द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी। ऐसी मान्यता है,कि बुंदेलखंड के राजा जासर के दो वीर और प्रतापी पुत्रों आल्हा और उदल के द्वारा घने जंगल के बीच इस मंदिर में उनकी पूजा-अर्चना की जाती थी और वे श्रद्धा भाव से माता की पूजा में लीन रहा करते थे। पूजा समाप्त होने पर आल्हा ऊदल के द्वारा माता के चरणों में अपने शीश की बलि दी जाती थी, किंतु माता का आशीर्वाद से उनके सर फिर जुड़ जाते थे। नर बलि के कारण मंदिर का नाम नर देवी पड़ा।

मंदिर पहुंचने वाले भक्तों की मन्नतें होती हैं पूरी

नर देवी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है दूर-दूर से भक्त यहां सालों भर माता के दर्शन को पहुंचते हैं ।भक्तों की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से उनके दुखों का निवारण हो जाता है। इस बाबत पूछे जाने पर मंदिर के पुजारी खाटू श्याम पुरी ने बताया कि आल्हा उदल के द्वारा मंदिर की स्थापना की गई थी। मंदिर की परिक्रमा बाघ के द्वारा की जाती थी, परिक्रमा के बाद बाघ जंगल में वापस चला जाया करता था ,किंतु कभी किसी भक्त के साथ कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। चैत और शारदीय नवरात्र में बाल्मीकि नगर, हर्नाटांड़ थरुहट क्षेत्र और पड़ोसी देश नेपाल के अलावा उत्तर प्रदेश से भी भारी संख्या में भक्त माता के दर्शन को यहां पहुंचते हैं। असाध्य रोग की दवा है अमृत कुआं का पानी ऐसी मान्यता है कि मंदिर परिसर में स्थित कुआं जिसे अमृत कुआं कहा जाता है। जिसका पानी आज भी पूरी तरह स्वच्छ और निर्मल है। का सेवन करने मात्र से हीं कई असाध्य रोगों से लोगों को निजात मिल जाती है। मंदिर पहुंचने वाले भक्त अमृत कुंआ का पानी का सेवन करने से नहीं चूकते। इस पानी को माता का प्रसाद भी माना जाता है।


मंदिर का हुआ जिर्णोद्धार:-


नर देवी मंदिर का जीर्णोद्धार लगभग 6 वर्ष पूर्व जाने माने समाजसेवी स्वर्गीय हरेंद्र किशोर सिंह के द्वारा किया गया। आज यह मंदिर अपनी नक्काशी, खूबसूरती और भव्य निर्माण के लिए जानी जाती है। मंदिर में आने वाली भारी भीड़ को भीड़ के कारण पर्याप्त जगह होने से परेशानियां नहीं होती हैं। मंदिर के शिखर पर अलग-अलग देवताओं की लगी मूर्तियां भक्तों और श्रद्धालुओं को भक्तिमय बना देती है।


भीड़ को नियंत्रित करते हैं पूजा समिति के सदस्य :–


मंदिर में होने वाली भारी भीड़ को नर देवी मंदिर पूजा समिति के सदस्य पूरी तरह नियंत्रित करते हैं ,ताकि किसी भी भक्त श्रद्धालु को किसी भी प्रकार की असुविधा ना हो सके।
पूजा समिति के द्वारा मंदिर परिसर और उसके आसपास के क्षेत्र की साफ सफाई पर पूरा ध्यान रखा जाता हैं।

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