अमर सुहाग के लिए सुहागिनों ने रखा वट सावित्री व्रत।

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आदर्श नारीत्व का प्रतीक है बट सावित्री व्रत।


पीपल और बरगद के पेड़ों की परिक्रमा कर पति के दीर्घायु की कामना की।


अनिल कुमार शर्मा मझौलिया पश्चिम चंपारण।

सनातन धर्म में व्रत त्योहार अपना विशेष महत्व रखते हैं। पूजन पाठ के माध्यम से सनातन धर्म में श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है क्योंकि उनका विश्वास और श्रद्धा पूर्ण रूप से संबंधित पर्व और अनुष्ठान पर कायम रहता है। इसी कड़ी में सोमवार को ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मनाए जाने वाले वट सावित्री व्रत एवं तदोपरांत अमावस्या तिथि को मनाए जाने वाले सोमवती अमावस्या के पावन अवसर पर सुहागिन महिलाओं ने निर्जला व्रत रख आस पास के बरगद और पीपल के पेड़ों का 108 बार परिक्रमा करते हुए अपने पति की दीर्घायु की कामना की । वही पूजनोपरांत एक दूसरे महिला का पूरा मांग भर अमर सुहाग का वर मांगी । इस पावन अवसर पर अहले सुबह से ही महिलाएं स्नान आदि करके नए-नए सुसज्जित परिधानों से लैस होकर पूजा का थाल सजा कर पूजन सामग्री वस्त्र , बांस का पंखा सहित फल मिष्ठान आदि को सुसज्जित कर बरगद और पीपल के पेड़ के पास पहुंच पूजन अर्चना कर पेड़ों का परिक्रमा कर व्रत का समापन किया । इस क्रम में बरगद और पीपल के वृक्षों पास व्रती महिलाओं की भीड़ देखी गई।
बट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। बट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की परिक्रमा करने से जीवन में दीर्घायु स्वास्थ्य और समृद्धि आती है इस व्रत का वर्णन महाभारत स्कंद पुराण और व्रत राज आदि शास्त्रों में विस्तार से मिलता है ।इस दिन सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा अर्चना करती है।
व्रत के माध्यम से सती अनसूईया और सत्यवान की पूजा की जाती है और सुहागिन महिलाएं सती अनसूईया की तरह पति धर्म का पालन करने का संकल्प लेती है।

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